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भजन और कीर्तन से मन की अवस्था बहुत तेजी से उन्नत हो जाती है. इसके बाद अगर ध्यान किया जाए या प्रार्थना कि जाए तो वह तुरंत पूरी होती है.
श्रीमद्भागवत कहता है कि कलियुग में श्रीहरिनाम-संकीर्तन यज्ञ के द्वारा ही आराधना करना शास्त्रसम्मत है। वे लोग बुद्धिमान हैं जो नाम संकीर्तन रूपी यज्ञ के द्वारा कृष्ण की आराधना करते हैं। रामचरित मानस में भी कहा गया है कि कलियुग में भव सागर पार करने के लिए राम नाम छोड़ कर और कोई आधार नहीं है। कलियुग समजुग आन नहीं , जो नर कर विश्वास। गाई राम गुण गन विमल , भव तर बिनहिं प्रयास।।
भक्ति और एकाग्रता के लिए भजन, कीर्तन और स्मरण जैसी तमाम चीज़ों का सहारा लिया जाता है. भजन और कीर्तन से मन की अवस्था बहुत तेजी से उन्नत हो जाती है. इसके बाद अगर ध्यान किया जाए या प्रार्थना कि जाए तो वह तुरंत पूरी होती है. भजन और कीर्तन के सही प्रयोग से व्यक्ति को रोगों तथा मानसिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है
कीर्तन की कुछ धुनें सीखकर समूह में उनका अभ्यास कीजिए। कीर्तन को प्रभावी बनाने के लिए हारमोनियम, मृदंग और मंजीरों का उपयोग करना चाहिए। इन वाद्यों के साथ अपने हृदय पक्ष और श्रद्धा का संपुट भी कीजिए। कीर्तन के द्वारा आप स्वयं को कुंठाओं से मुक्त कर सकते हैं।
कीर्तन द्वारा आप स्वयं को शरीर तथा बाह्य वातावरण से दूर ले जा सकते हैं। इसके अभ्यास से मानसिक जड़ता नहीं संवेदना घनीभूत होती है। सामान्य तौर पर किसी शब्द को दोहराने से मन की कमजोरी जाहिर होती है पर जब आप कीर्तन करते है तब आपके मन से संघर्ष नहीं होता।
यद्यपि भावनाओं को न तो समुचित ढंग से समझा जाता है और न ही उनका उपयोग किया जाता है, तथापि उन्हें व्यक्ति के हाथ में अत्यंत प्रभावी उपकरण माना जाता है।
इस रहस्य को भारत के लोग अच्छी तरह जानते हैं। मेडिलेब में ध्यान और कीर्तन पर किए प्रयोगों का ब्यौरा देते हुए इस्कान के स्वामी ने लिखा है कि योग के कठिन अभ्यासों और साधना के साथ मधुर कीर्तन रूपी नादयोग का अभ्यास सोने में सुहागे का कार्य करता है।
बुद्धि के द्वारा आप कभी भी चेतना की गहराई में नहीं उतर सकते और न ही उसे पकड़ सकते हैं। हां बुद्धि के द्वारा ब्रह्म, जगत, सत्य आदि की सैद्धांतिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। परंतु इनका अनुभव कदापि नहीं कर सकते।
याद रखिए, कीर्तन कोई बौद्धिक योग नहीं है। कीर्तन में उत्पन्न हर ध्वनि तरंग आपकी चेतना की गहराई में उतरती है। बुद्धिजीवी कीर्तन को यदि बुद्धि के माध्यम से समझने की कोशिश करें तो संभवत: उनके पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा, क्योंकि कीर्तन का प्रयोजन व्यक्ति के भावनात्मक पक्ष को छूना है।
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